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सफर में धुप तो होगी, जो चल सको तो चलो,

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सफर में धुप तो होगी, जो चल सको तो चलो, सभी हे भीड़ में जो तुम भी निकल सको तो चलो, इधर-उधर कई है मंजिले जो चल सको तो चलो, बने बनाये है सांचे जो ढल सको तो चलो, सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो, किसी के वास्ते कँहा बदलती है राहे, तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो, यँहा किसी को कोई रास्ता नहीं देता, मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो, सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो, यही है जिंदगी कुछ खाव्ब और चन्द उम्मीदे, इन्ही खिलोनो से तुम भी बेहल सको तो चलो, सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो, हर एक सफर को है महफूज रास्तो की तलाश, इफाज़तों की रियायते बदल सको तो चलो, सफर में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो, कँही नहीं है सूरज हर जगह है धुंआ-धुंआ, खुद अपने आपसे बाहर निकल सको तो चलो, सफर में धुप तो होगी, जो चल सको तो चलो। www.ashishyadav2309.blogspot.com  

Every girl has rights to learn! Educate girls.

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एक गरीब परिवार में एक सुन्दर सी बेटी 👰  ने जन्म लिया तो  बाप दुखी हो गया सोचने लगा कि बेटा पैदा होता तो कम से कम काम में तो हाथ बटाता  उसने बेटी को पाला जरूर  मगर दिल से नही  वो पढने जाती थी तो ना ही स्कूल की फीस टाइम से जमा करता  और ना ही कापी किताबों पर ध्यान देता था  अक्सर दारू पी कर घर में कोहराम मचाता था  उस लडकी की मॉ बहुत अच्छी व बहुत भोली भाली थी वो अपनी बेटी को बडे लाड प्यार से रखती थी  वो पति से छुपा-छुपा कर बेटी की फीस जमा करती  और कापी किताबों का खर्चा देती थी।  अपना पेट काटकर फटे पुराने कपडे पहन कर गुजारा कर लेती थी।  मगर बेटी का पूरा खयाल रखती थी।  पति अक्सर घर से कई कई दिनों के लिये गायब हो जाता था।  जितना कमाता था दारू मे ही फूक देता था।  वक्त का पहिया घूमता गया " " " " बेटी धीरे-धीरे समझदार हो गयी  दसवीं क्लास में उसका एडमीसन होना था।  मॉ के पास इतने पैसै ना थे जो बेटी का स्कूल में दाखिला करा पाती।  बेटी डरडराते हुये पापा से बोली  पापा मैं पढना चाहती हूं मेरा हाई...